wheat disease prevention पीला रतुआ से गेहूं फसल बचाने के 5 प्रभावी उपाय, कांगड़ा में कृषि विभाग की तैयारी
wheat disease prevention कांगड़ा जिले के कृषि विभाग की टीम ने बायो कंट्रोल लैब पालमपुर के सहयोग से क्षेत्रीय निरीक्षण किया।
wheat disease prevention कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश: कांगड़ा जिले के किसानों के लिए एक खतरनाक चुनौती सामने आई है। पीला रतुआ (Yellow Rust) नामक यह रोग, जो गेहूं की फसल को बर्बाद करने की क्षमता रखता है, अब कृषि विभाग के लिए चिंता का विषय बन चुका है। कृषि विभाग ने इस रोग के प्रसार को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए हैं और किसानों को इस खतरनाक रोग से बचाव के लिए जागरूक करने की मुहिम तेज कर दी है। यह रोग गेहूं और जौ में होने वाला एक खतरनाक फंगल इंफेक्शन है, जो पक्सीनिया स्ट्राईफ़ॉर्मिस नामक कवक से फैलता है।
कांगड़ा में पीला रतुआ के खतरे की शुरुआत
कांगड़ा जिले के कृषि विभाग की टीम ने बायो कंट्रोल लैब पालमपुर के सहयोग से क्षेत्रीय निरीक्षण किया। इस दौरान परागपुर, अमरोह, कोटला, कोटला बेहड़ और सेहरी पंचायतों का दौरा किया गया, जहां गेहूं की फसल में पीला रतुआ के लक्षणों की जांच की गई। कृषि विभाग के अधिकारी किसानों को इस रोग के शुरुआती लक्षणों के बारे में जानकारी दे रहे हैं ताकि वे समय रहते इसका इलाज कर सकें।
पीला रतुआ का असर और लक्षण
पीला रतुआ का सबसे प्रमुख लक्षण पत्तियों पर पीले धब्बे का दिखाई देना है। यह धब्बे पत्तियों के डंठल पर भी दिखाई दे सकते हैं। अगर इन धब्बों को छुआ जाए, तो हल्दी जैसा पाउडर हाथों पर लग सकता है। इस रोग का असर गेहूं की फसल पर बहुत गंभीर होता है और यदि इसे समय पर नियंत्रित नहीं किया जाए, तो यह पूरी फसल को नष्ट कर सकता है। कृषि विभाग ने किसानों को सलाह दी है कि वे अपने खेतों का नियमित निरीक्षण करें और इस रोग के लक्षणों को पहचानने की कोशिश करें।
कृषि विभाग की मुहिम
कृषि विभाग के अधिकारी, जैसे कि रीता ठाकुर, अंजू ठाकुर, और सपन धीमान, किसानों को इस रोग के लक्षणों से अवगत करा रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इस समय तक परागपुर क्षेत्र में गेहूं की फसल में पीला रतुआ का कोई लक्षण नहीं पाया गया है, लेकिन यह सतर्कता बरतने का समय है। किसानों को बताया गया है कि वे मूल रूप से पौधों का निरीक्षण करें और समय रहते इस रोग के प्रसार को रोकने के उपाय अपनाएं।
कैसे करें बचाव?
पीला रतुआ से बचाव के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं। सबसे पहले, किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा, खेतों में समान दूरी पर फसलें बोने से इस रोग के प्रसार को नियंत्रित किया जा सकता है। जड़ी-बूटियों और बायो-फंगसाइड्स का उपयोग भी इस रोग के नियंत्रण में सहायक हो सकता है। इसके अलावा, खेतों की नमीयत और पानी की निकासी पर भी ध्यान देना चाहिए ताकि फंगसाइड्स का प्रभाव ज्यादा समय तक बने रहे।
कृषि विभाग का निगरानी अभियान
कृषि विभाग ने फसल निरीक्षण की प्रक्रिया को तेज कर दिया है और हर पंचायत में कृषि अधिकारियों को भेजकर पीला रतुआ के लक्षणों की पहचान करने के लिए किसानों की मदद ली जा रही है। पालमपुर विश्वविद्यालय से सहायक प्रोफेसर जोगिंद्र पाल राय ने भी इस अभियान में सहयोग दिया है। इस निरीक्षण में यह पाया गया कि फिलहाल, कांगड़ा जिले में पीला रतुआ का कोई लक्षण नहीं मिला है, लेकिन सतर्क रहना बहुत जरूरी है।
किसान क्या करें?
किसानों को सलाह दी जा रही है कि वे अपने खेतों में पीले धब्बे और हल्दी जैसा पाउडर देखकर जल्दी से जल्दी कृषि विभाग से संपर्क करें। साथ ही, रासायनिक उपचार के साथ-साथ जैविक उपचार का भी उपयोग करें ताकि फसल को बचाया जा सके। कृषि विभाग ने इस मुद्दे को लेकर किसानों के लिए विशेष वर्कशॉप और सेमिनार आयोजित किए हैं, ताकि वे इस रोग से निपटने के लिए सही जानकारी प्राप्त कर सकें।
कांगड़ा के किसानों को राहत की खबर
हालांकि, कृषि विभाग के द्वारा किए गए निरीक्षण के दौरान इस समय तक कांगड़ा जिले के किसानों की फसल में पीला रतुआ के कोई लक्षण नहीं मिले हैं, लेकिन इस खबर से राहत मिलने के बावजूद, किसानों को पूरी तरह से सतर्क रहना चाहिए। जिला कृषि विभाग के निदेशक राहुल कटोच ने कहा कि इस समय फसल में कोई लक्षण नहीं पाया गया है, लेकिन पीला रतुआ की रोकथाम के लिए सभी सावधानियों को बरतने की जरूरत है।
कांगड़ा जिले में पीला रतुआ के खतरे से निपटने के लिए कृषि विभाग ने मुहिम तेज कर दी है। यह रोग गेहूं और जौ की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन समय रहते उपचार और जागरूकता से इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है। किसानों को नियमित रूप से अपने खेतों का निरीक्षण करने की सलाह दी गई है।